हिन्द की चादर कहे जाने वाले सिखों के नौवें गुरू… गुरू तेग बहादुर जी का आज प्रकाश उत्सव है। धर्म की रक्षा के लिए इन्होंने अपने परिवार का त्याग कर दिल्ली में अपना बलिदान दिया था।गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। ये गुरु हरगोविन्द जी के पाँचवें पुत्र थे।इन्होंने आनन्दपुर साहिब का निर्माण कराया और ये वहीं रहने लगे थे। उनका बचपन का नाम त्यागमल था। सिर्फ 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुग़लों के हमले के ख़िलाफ़ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग़ बहादुर याने तेग का धनी रख दिया।युद्धस्थल में भीषण रक्तपात से गुरु तेग़ बहादुर जी के वैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनका का मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर लग गया। धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग़ बहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 साल तक ‘बाबा बकाला’ नामक स्थान पर साधना की,,,, गुरु जी ने धर्म के प्रसार लिए कई स्थानों का भ्रमण किया। दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुँचे ।गुरु तेग बहादुर जी के 1 16 शब्द गुरु ग्रन्थ साहेब में दर्ज है जिसमे उन्होंने इश्वर की महिमा का गुणगान किया है।जब ओरंगजेब ने हिंदुस्तान में जबरन मजहब बदलने का हुक्म दिया तो कश्मीर से ब्राह्मणों का एक टोला गुरु साहेब के पास मदद के लिए आया,,,गुरु जी उनके साथ दिल्ली गए और दिल्ली मे गुरु तेग बहादुर ने कहा कि अगर आप मेरा मज़हब बदलने में कामयाब हो जाते है तो ये सब भी अपना मज़हब बदल देंगे,,, मुग़ल हुकूमत ने अपना पूरा जॊर लगा दिया अंत में दिल्ली के चांदनी चॊक पर उनको शहीद कर दिया गया। गुरु साहेब का शीश गुरु के एक सिक्ख भाई जैता जी दिल्ली से आनादपुर साहेब लेकर आये,,,, दिल्ली से अनादपुर लेते समय भाई जेता जी हरियाणा में तरावडी और अम्बाला में रुके थे इन स्थानों पर गुरुद्वारे सुशोभित है जिनके नाम शीशगंज साहेब है।गुरु तेग बहादुर जी की इसी शहादत के बाद सरे हिंदुस्तान के हिन्दू समाज में कुशासन के खिलाफ लड़ने की हिम्मत जागृत हुई इसीलिए कहा जाता है
“धरम हेत साका जिनि कीआ
सीस दीआ पर सिरड न दीआ।”