महिला और बाल विकास कल्याण विभाग भले ही छोटे बच्चों के विकास के तमाम दावे करे… लेकिन हकीकत में इन दावों की हवा निकलती नजर आ रही है… जिलेभर में आंगनवाड़ी केंद्र तो सैकड़ों हैं, लेकिन अधिकांश अपने खुद के आंगन को तरसे हुए दिखते है । अधिकतर या तो पंचायती कमरों में चल रहे हैं या फिर किराए के भवनों में। किसी भी स्कीम का सही फायदा आम जनता को तभी मिल सकता है, जब उसका आधारभूत ढांचा मजबूत हो। है। जिलाभर में कुल आंगनवाड़ी केंद्रों की संख्या 275 है। इनमें से ज्यादातर उधार की बिल्डिंग के सहारे चल रहे हैं। जिनमें से कुछ भवनों की हालत तो इतनी जर्जर है कि वहां बच्चों को बिठाना बेहद जोखिम भरा है। आंगनवाड़ी कैंद्रों की हालत को देखते हुए परिजन भी अपने बच्चों को भेजने से परहेज करते हैं लेकिन बच्चों की जिद के आगे मजबूरी में उन्हे बच्चों को भेजना पड़ता है।