हथीन के आगनबाड़ी केंद्र आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। महिला और बाल विकास विभाग ने ये केंद्र गर्भवती महिलोओं और बच्चों के विकास के लिए शुरू किए थे,,लेकिन इन केंद्रों पर ना तो बच्चों को पोशाहार मिल रहा है और ना ही शिक्षा।बस यही वजह है कि आज ये योजना अपने लक्ष्य से भटकती नजर आ रही है। सरकार ने गांव बामनीखेडा में 9 आंगनवाडी केन्द्र खोले हैं ..जिनमें से सिर्फ तीन ही सुचारू रूप से चल रहे है।कहीं पर अव्यवस्थाओं का आलम साफ दिखाई दे रहा है तो कहीं पर योजना का फ्लोप शो। ये केंद्र बने तो थे बच्चों और गर्भवती महिलाओं के विकास के लिए लेकिन आज खुद अपनी मदद के लिए तरस रहे हैं।बच्चों को ना ही पोषाहार मिल रहा है और ना ही बैठने के लिए कोई अच्छी सुविधा। महिलाओं और बच्चो की शिकायत है कि उन्हें महीने में दो चार दिन की खाद्य साम्रगी दी जाती है बाकि दिन ये केन्द्र बन्द पड़े रहते है । गांव के लोगो का कहना है कि सरकार की तरफ से जो खाने का समान बच्चो के लिए आता है। वो बच्चो को मिलता ही नहीं है। समान को आंगनवाडी केन्द्रो पर काम करने वाली वर्कर और हैल्पर ही डकार जाते है।यही नहीं लोगों का कहना है कि किसी केन्द्र पर महिला वर्कर नहीं हाती तो कहीं पर महिला हैल्पर।कुछ केंद्रों पर तो हमेशा ताला जडा रहता है और जो केन्द्र खुले होते है, उन पर बच्चो के लिए ना तो पढने की किताबें हैं और न ही खेलने का सामान । वहीं इस मामले में जब आंगनवाडी केन्द्र की महिला वर्कर से बात की गई तो उनका साफ तौर पर कहना था कि केन्द्रों पर सारा सामान बच्चों और गर्भवती महिलाओं को ही दिया जाता है।वहीं उनका ये भी कहना था कि केन्द्र पर महिला हैल्पर आती नही है.. जिस वजह से बच्चों को सामान देरी से मिल पाता है। महिला हैल्पर से जब ना आने की वजह पूछी गई तो मैडम जी ने बहीनों की लाइन लगा दी…बहानों में बीमार होना सबसे बड़ा बहाना था लेकिन कौन सी बीमारी है..इसका जवाब नहीं दे पाईं। इन केन्द्रों पर बच्चों को पोषाहार देने के लिए मुंगफली, भुने हुए चने, दलिया, मीठे चावल, मुरमुरे रोज चार रुपये प्रति बच्चे डाइट देने का प्रावधान है, जबकि गर्भवती महिलाओं को 5 रुपये प्रति महिला के हिसाब से डाइट देने का प्रावधान है।लेकिन ये खाने पीने की साम्रगी कहां जाती इसका जबाव शायद केंद्र चलाने वाले ही जानते हों।सरकार हर बार कई योजनाओं को चलाने का दम भरती है..योजनाएं शुरू भी होती हैं लेकिन इन योजनाओं का सुचारु रुप से चलना खुद में एक सावाल बन कर रह गया है।

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