आज सर छोटूराम की जयंती है। छोटूराम का जन्म रोहतक के नजदीक गढ़ी सांपला गांव में 24 नवंबर 1881 को हुआ था। छोटूराम न सिर्फ किसानों के मसीहा के थे ,बल्कि हर वर्ग के लिए अपनी पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी। आइये एक नजर डाल लेते है , उनके योगदान पर जो अनमोल है अतूल्यं है

समाज सुधारक दीनबंधु गरीबों के रहबर और किसानों के मसीहा सर छोटूराम का जन्मर 24 नवंबर 1881 में रोहतक के पास गढ़ी-सापंला गांव में एक जाट परिवार में हुआ था। छोटूराम के महान व्येक्तित्वी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिले में चौधरी छोटूराम के एक आहवाहन अंग्रेजी हुकूमत को कंपकपा देता था। देश के इतिहास में उनका योगदान अमूल्यक है। सर छोटूराम ने किसानों, गरीबों मजलूमों और कर्जदारों के लिए बेहतरीन काम किया।
दीनबंधु छोटूराम ने एक महान क्रांतिकारी समाज सुधारक के रूप में अपनी पहचान बनाई। इन्होंने अनेक शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जिसमें “जाट आर्य-वैदिक संस्कृत हाई स्कूल रोहतक” प्रमुख है। एक जनवरी 1913 को जाट आर्य-समाज ने रोहतक में एक विशाल सभा की जिसमें जाट स्कूल की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया गया और 7 सितम्बर 1913 को जाट स्कूल की स्थापना हुई।

कर्जा माफी अधिनियम – 1934
यह क्रान्तिकारी ऐतिहासिक अधिनियम दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने 8 अप्रैल 1935 में किसान और मजदूर को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए बनवाया। इस कानून के तहत अगर कर्जे का दोगुना पैसा दिया जा चुका है तो ऋणी ऋण-मुक्त समझा जाएगा। इस अधिनियम के तहत कर्जा माफी बोर्ड बनाए गए जिसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते थे। साथ ही दाम दुप्पटा का नियम लागू किया गया। इसके मुताबिक दुधारू पशु, बछड़ा, ऊंट, रेहड़ा, घेर, गितवाड़ आदि आजीविका के साधनों की नीलामी नहीं की जाएगी।

साहूकार पंजीकरण एक्ट – 1938
सर छोटूराम के अथक प्रयासों से ये कानून 2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ था। इसके मुताबिक साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज नहीं दे पाएगा और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर पाएगा। इस अधिनियम के कारण साहूकारों की एक फौज पर अंकुश लग गया।

गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट – 1938
चौधरी छोटूराम ने यह कानून 9 सितंबर 1938 को प्रभावी करवाया। इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थी और 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वो सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गई। इस कानून के तहत केवल एक सादे कागज पर जिलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था। इस कानून में अगर मूलराशि का दोगुना धन साहूकार ले चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया।

कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम – 1938
चौधरी छोटूराम की मेहनत रंग लाई और यह अधिनियम 5 मई, 1939 से प्रभावी माना गया। इसके तहत नोटिफाइड एरिया में मार्किट कमेटियों का गठन किया गया। एक कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक किसानों को अपनी फसल का मूल्य एक रुपये में से 60 पैसे ही मिल पाता था। किसानों को अनेक कटौतियों का सामना करना पड़ता था। आढ़त, तुलाई, रोलाई, मुनीमी, पल्लेदारी और कितनी ही कटौतियां होती थीं। लेकिन इस अधिनियम के तहत किसानों को उसकी फसल का उचित मूल्य दिलवाने का नियम बना। आढ़तियों के शोषण से किसानों को निजात इसी अधिनियम ने दिलवाई।

व्यवसाय श्रमिक अधिनियम – 1940
यह अधिनियम 11 जून 1940 को लागू हुआ। बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाए जाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई। इस कानून के मुताबिक सप्तानह में 61 घंटे और एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकेगा। साल भर में 14 छुट्टियां दी जाएंगी। 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जाएगी। दुकान और व्यवसायिक संस्थान रविवार को बंद रहेंगे। छोटी-छोटी गलतियों पर वेतन नहीं काटा जाएगा। जुर्माने की राशि श्रमिक कल्याण के लिए ही प्रयोग हो पाएगी।

इसके अलावा उत्तरर भारत में हरित क्रांति लाने वाले भाखड़ा डैम की परिकल्पइना चौधरी छोटूराम ने ही की थी और भांखड़ा डैम बनने में उन्होकनें अथक प्रयास किए थे। सर छोटूराम ने सिर्फ किसानों के हर वर्ग के लिए काम किया और हर तबके को शोषण से निजात दिलाई। इसमें कोई सन्देह नहीं कि सर छोटूराम ने अपना सारा जीवन समाज के गरीब तबके, किसानों और मजदूरों के उत्थान के लिए कुर्बान कर दिया। हिन्दुस्तान में सर छोटूराम ही एकमात्र ऐसे सशक्त नेता थे, जिनके दबदबे के आगे पाकिस्तान के जन्मदाता मोहम्मद अली जिन्ना का भी कोई वजूद नहीं था। साल 1924 से 1945 तक पंजाब की राजनीति के अकेले सूर्य रहे चौ. छोटूराम 9 जनवरी 1945 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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