नई दिल्लीः राष्ट्रपति प्रणबमुखर्जी ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राजनीतिक बिरादरी, खासतौर से सत्ता पक्ष को उसकी संवैधानिक व लोकतांत्रिक जिम्मेदारी के प्रति आगाह किया है। सरकार को उसकी जिम्मेदारी याद दिलाते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि पूर्ण बहुमत से सरकार बनी है तो उसका दायित्व है कि वह स्वच्छ, कुशल, पारदर्शी और जवाबदेह शासन दे।
पिछले दिनों हुई भड़काऊ बयानबाजी पर बेहद सख्त लहजे में कहा है कि वाणी की हिंसा चोट पहुंचाती है। उन्होंने पिछले दिनों आए ताबड़तोड़ अध्यादेशों को भी लोकतंत्र और नीतियों के लिए गलत करार दिया। साथ ही, विपक्ष को भी संसद न चलने देने के लिए फटकारा।
राष्ट्र के नाम संदेश में राष्ट्रपति ने कहा कि तीन दशक बाद जनता ने स्थायी सरकार के लिए अकेले दल को बहुमत देते हुए सत्ता में लाने के लिए मतदान किया है। देश के शासन को गठबंधन की राजनीति की मजबूरियों से मुक्त किया है। इन चुनावों के परिणामों ने चुनी हुई सरकार को, नीतियों के निर्माण व इन नीतियों के कार्यान्वयन के लिए कानून बनाकर जनता के प्रति अपनी वचनबद्धता को पूरा करने का जनादेश दिया है।
मतदाताओं ने अपना कार्य पूरा कर दिया है; अब यह चुने हुए लोगों का दायित्व है कि वह इस भरोसे का सम्मान करें। यह मत एक स्वच्छ, कुशल, कारगर, लैंगिक संवेदनायुक्त, पारदर्शी, जवाबदेह और नागरिक अनुकूल शासन के लिए था।
राष्ट्रपति ने संसद न चलने के लिए भी राजनीतिक बिरादरी को नसीहत दी। अध्यादेशों पर पहले ही चिंता जता चुके राष्ट्रपति ने कहा कि एक सक्रिय विधायिका के बिना शासन संभव नहीं है। विधायिका जनता की इच्छा को प्रतिबिंबित करती है। यह ऐसा मंच है जहां शिष्टतापूर्ण संवाद का उपयोग करते हुए, प्रगतिशील कानून के द्वारा जनता की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए सुपुर्दगी-तंत्र की रचना की जानी चाहिए। इसके लिए भागीदारों के बीच मतभेदों को दूर करने व बनाए जाने वाले कानूनों पर आम सहमति लाने की जरूरत होती है।
धर्म टकराव का कारण नहीं बन सकता
राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि धर्म टकराव का कारण नहीं बन सकता। विषाक्त बयानबाजी करने वालों को संविधान का उल्लेख कर राष्ट्रपति ने भारत की बहुलतावादी सहिष्णुता की संस्कृति का आईना दिखाया। उन्होंने कहा कि उन्माद के नतीजे घातक होते हैं। वाणी की हिंसा चोट पहुंचाती है और लोगों के दिलों को घायल करती है। दुनिया में धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद के वीभत्स नतीजों से सबक लेने की उन्होंने जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि बहुत से देश धर्म आधारित हिंसा के दलदल में फंसते जा रहे हैं। वहीं हमने सदैव धार्मिक समानता पर अपना भरोसा जताया है, जहां हर धर्म कानून के सामने बराबर है तथा प्रत्येक संस्कृति दूसरे में मिलकर एक सकारात्मक गतिशीलता की रचना करती है।
बलात्कार, हत्या और उत्पीडऩ से महिलाएं भयभीत हुईं
राष्ट्रपति ने महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर भी घोर चिंता जताई। बलात्कार, हत्या और सड़कों पर उत्पीडऩ, अपहरण और दहेज हत्या जैसी घटनाओं ने महिलाओं को अपने ही घर में भयभीत कर दिया। उन्होंने देशवासियों से महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने का संकल्प लेने का आह्नान किया। मुखर्जी ने कहा, मुझे यह देखकर कष्ट होता है कि जब महिलाओं की सुरक्षा की बात आती है तो मदर इंडिया को उसकी अपनी ही संतानें आदर नहीं करतीं। केवल वही राष्ट्र विश्व शक्ति बन सकता है जो अपनी महिलाओं की इज्जत करता हो और उन्हें सशक्त बनाता हो।
बिना चर्चा कानून बनाने से संसद की कानून निर्माण की भूमिका को धक्का पहुंचता है। इससे जनता द्वारा व्यक्त विश्वास टूटता है। यह न तो लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही इन कानूनों से संबंधित नीतियों के लिए अच्छा है।
– भारत के राष्ट्रपति