प्रदेश के सरकारी अस्पताल काफी समय से डाक्टरों की कमी का रोना रो रहे है। अस्पतालों में मरीजों की लम्बी लम्बी लाइनें लगी रहती है लेकिन स्वास्थय विभाग आंख मूंदे पडा है। डाक्टरों की कमी का ये हाल जब है तब प्रदेश के बजट का एक बडा हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं के लिए होता है। सरकारी अस्पतालों में रोजाना हजारों मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। लेकिन ज्यादातर को इलाज की जगह निराशा ही हाथ लगती है। या तो मरीजों को इलाज नहीं मिलता… मिलता है तो बहुत देर से। वजह… डॉक्टर्स की कमी। नियमों के मुताबिक हर जिला स्तरीय अस्पताल में सभी रोगों के इलाज के लिए डॉक्टर होना चाहिए। लेकिन प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा अस्पताल होगा जिसमें जरूरत के मुताबिक डॉक्टर्स की तैनाती हो। आधे से ज्यादा वार्डों में डॉक्टर्स का टोटा हैं। ऐसे में मरीजों की परेशानी का अंदाजा लगाया जा सकता है। एक तो बीमारी.. उपर से लम्बी कतारें और घंटों का इंतजार… शरीर और सब्र दोनों जवाब देने लगते हैं। ऐसा नहीं है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री इन हालात से वाकिफ नहीं हैं। वो बखूबी जानते हैं और साथ आश्वासन दे रहे हैं कि जल्द ही इस समस्या से पार पा लिया जाएगा। स्वास्थ्य मंत्री चाहे जो भी कहें, मरीजों को ना तो उनके आश्वासन रास आ रहे हैं और ना सरकारी अस्पतालों की सुविधाएं। लेकिन जब तक दिल में सरकारी सुविधा का भ्रम और प्राइवेट अस्पतालों के बिल का डर कायम हैं, अस्पताल के परिसर में बैठकर.. सरकार और प्रशासन को कोसने के अलावा इनके पास कोई चारा नहीं हैं। हर साल, जब प्रदेश का बजट आता है तो उसका बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं के लिए होता है।

 

 

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